NOT KNOWN FACTUAL STATEMENTS ABOUT वैष्णव धर्म

Not known Factual Statements About वैष्णव धर्म

Not known Factual Statements About वैष्णव धर्म

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(“inconceivable duality and nonduality”), the perception which the relation in between God and the whole world is beyond the scope of human comprehension. Together with these philosophical sects, many other Vaishnava teams are scattered all through India, generally centred in neighborhood temples or shrines.

गुप्तकाल में विष्णु का कौन-सा अवतार सबसे अधिक प्रसिद्ध था – वराह

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गुप्तकाल के बाद भी वैष्णव धर्म का उत्थान होता रहा। हर्षकाल में भी यह एक प्रमुख धर्म था। हर्षचरित में पांचरात्र तथा भागवत संप्रदायों का उल्लेख मिलता है। राजपूत काल में तो वैष्णव धर्म का अत्यधिक उत्कर्ष हुआ। विभिन्न लेखों में मंदिर तथा मूर्तियों का निर्माण करवाया था। चंदेल राजाओं ने खजुराहो में विष्णु के कई मंदिर बनवाये थे। चेदि, परमार, पाल तथा सेन राजाओं के शासन में भी विष्णु के कई मंदिर तथा मूर्तियों का निर्माण करवाया गया। इस काल की विष्णु मूर्तियाँ चतुर्भुजी हैं तथा उनके हाथों में शंख, चक्र, गदा एवं पदम है। साथ ही साथ लक्ष्मी और गरुङ की मूर्तियां भी निर्मित करवायी गयी थी। विष्णु के दस अवतारों की कथा का व्यापक प्रचलन हुआ तथा प्रत्येक की मूर्तियों का निर्माण हुआ। समाज में वैष्णव धर्म से संबंधित अनेक व्रतों एवं अनुष्ठानों का भी प्रचलन हो गया।

भगवान्‌ की उपलब्धि का एकमात्र साधन है : भक्ति। यह भक्ति मुक्ति से भी बढ़कर है। सामान्य जन आनंदमयी मुक्ति को ही जीवन का लक्ष्य मानते हैं, परंतु भक्तों की दृष्टि में वह नितांत हेय तथा नगण्य वस्तु है। प्रियतम के पाद्मों की सेवा ही उसका एकमात्र लक्ष्य होता है। भगवान्‌ मुक्ति देने के लिए उत्सुक रहते हैं, परंतु एकांती भक्त उसे कथमपि ग्रहण नहीं करता :

गरूड़ को विष्णु का वाहन होने की चर्चा महाभारत में प्राप्त होती है। जिसमें विष्णु ने गरूड़ को वरदान दिया। विष्णु ने गरूड़ को अपना वाहन चुनना चाहा तथा अपने ध्वज के ऊपर स्थित रहने की मांग की। इस प्रकार महाभारत में विष्णु के वाहन होने का प्रमाण प्राप्त होता है। कहीं-कहीं वैष्णव प्रतिमाओं के अभाव में विष्णु का ज्ञान उनके वाहन, प्रतीक आदि से भी होता है। गुप्त अभिलेखों में विष्णु के वाहन के रूप गरूड़ का get more info उल्लेख तथा गरूड़ की चर्चा भी मिलती है। गुप्त नरेशों ने गरूड़ प्रकार की मुद्राओं का भी प्रचलन किया था। गुप्त नरेशों का राजधर्म वैष्णव था और गरूड़ विष्णु का वाहन है। इसीलिये गरूड़ के चिन्ह को ही गुप्तों के राजचिन्ह के रूप में स्वीकार किया गया जिसका अंकन उनके राजाज्ञापत्र में प्राप्त होता है (समुद्रगुप्त की प्रयाग प्रशस्ति से ज्ञात होता है, कि उनके अधीनस्थ नरेशों ने गरुत्मदंक से अंकित राजाज्ञापत्र की मांग की थी। इससे ज्ञात होता है, कि गरूड़ चिन्ह राज्य चिन्ह था और राजाज्ञा पत्र केन्द्रीय शासन से संबंधित था।

वैष्णव धर्म के विषय में प्रारंभिक जानकारी उपनिषदों से प्राप्त होती है।

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मध्यकालीन वैष्णव आचार्यों ने भक्ति के लिए सभी वर्ण और जाति के लिए मार्ग खोला,

कंध चार-शर वैष्णव, ब्राह्मण कुल त्राता।। ओउम जय।।

वैष्णव धर्म के प्रवर्तक कृष्ण थे, जो वृषण कबीले के थे और जिनका निवास स्थान मथुरा था।

वैष्णव धर्म में मूर्ति पूजा तथा मंदिरों आदि का महत्त्वपूर्ण स्थान है। मूर्ति को ईश्वर का प्रत्यक्ष रूप माना जाता है। भक्त मंदिर में जाकर उसकी पूजा करते हैं। दशहरा, जन्माष्टमी जैसे पर्व वासुदेव-विष्णु के प्रति ऋद्धा प्रकट करने के प्रतीक हैं। वैष्णव उपासक भगवान का कीर्तन करते हैं तथा पवित्र तीर्थों पर एकत्रित होकर स्थान-स्थान पर ध्यान करते हैं। वैष्णव धर्म के प्रमुख आचार्यों में रामानुज, मध्व, बल्लभ, चैतन्य आदि के नाम उल्लेखनीय हैं, जिन्होंने इस धर्म का अधिकाधिक प्रचार किया। बाद में चलकर विष्णु का रामावतार सबसे अधिक व्यापक तथा लोकप्रिय हो गया। मध्यकाल में रामकथा का खूब विकास हुआ। गोस्वामी तुलसीदास ने रामचरितमानस की रचना कर समाज में रामभक्ति की महत्ता को प्रतिष्ठित कर दिया। आज भी करोङों हिन्दू राम की सगुणोपासना करते हैं।

गुप्त काल में विष्णु के वाहन गरूड़ का मानसी रूप में स्वतन्त्र सूर्तन भी मिलती है। एरण में ध्वज स्तम्भ के शीर्ष के रूप में गरूड़ का मानवी रूप में अंकन हुआ है। वहां वे दोनों हाथों से सर्प को पकड़े हुए है एवं सिर के पीछे वक्राकार प्रभामण्डल है। पुरातात्विक एवं आभिलेखिक साक्ष्यों से ज्ञात होता है, कि गुप्त काल में वैष्णव धर्म से संबंधित अनेक मूर्तियों का निर्माण हुआ था।

वैष्णव धर्म का इतिहास और महत्‍वपूर्ण तथ्‍य

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